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Bihar election: आपराधिक मुकदमों में घिरे कैंडिडेट को टिकट देने में वाम दल सबसे आगे, जानिए NDA और राजद का क्या है हाल; ADR रिपोर्ट में हुआ खुलासा

एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में वामदलों के सभी उम्मीदवार आपराधिक मुकदमों में घिरे हैं। कुल 32% प्रत्याशियों ने अपने खिलाफ केस की जानकारी दी है।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Wed, 29 Oct 2025 07:19:02 AM IST

Bihar election: आपराधिक मुकदमों में घिरे कैंडिडेट को टिकट देने में वाम दल सबसे आगे, जानिए NDA और राजद का क्या है हाल; ADR रिपोर्ट में हुआ खुलासा

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में दागी उम्मीदवारों की भरमार है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा मंगलवार को जारी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस चरण में मैदान में उतरे उम्मीदवारों में बड़ी संख्या में ऐसे हैं, जिन पर गंभीर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। रिपोर्ट के अनुसार, आपराधिक मामलों में सबसे आगे वामदल हैं — भाकपा और माकपा के सभी उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं, जबकि भाकपा (माले) के 93 प्रतिशत प्रत्याशी भी मुकदमों का सामना कर रहे हैं।


एडीआर ने यह रिपोर्ट 1314 में से 1303 उम्मीदवारों के नामांकन शपथ पत्रों का विश्लेषण कर तैयार की है। रिपोर्ट बताती है कि इन 1303 उम्मीदवारों में से 423 (32 प्रतिशत) प्रत्याशियों ने स्वयं स्वीकार किया है कि उनके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। वहीं, 354 यानी 27 प्रतिशत उम्मीदवारों ने बताया है कि उनके विरुद्ध गंभीर आपराधिक मामले चल रहे हैं।


रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के 100 फीसदी उम्मीदवार आपराधिक मामलों में फंसे हैं। भाकपा के सभी 5 उम्मीदवारों और माकपा के सभी 3 प्रत्याशियों ने अपने हलफनामे में मुकदमों की जानकारी दी है। इसी तरह, भाकपा (माले) के 14 में से 13 प्रत्याशी यानी 93 प्रतिशत उम्मीदवारों ने बताया कि वे आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं।


यह आंकड़ा यह दर्शाता है कि बिहार की राजनीति में वामपंथी दल भी अब “साफ छवि” के उम्मीदवारों की बजाय “राजनीतिक रूप से प्रभावशाली” चेहरों को प्राथमिकता दे रहे हैं, भले ही वे कानून के शिकंजे में क्यों न हों।


एडीआर की रिपोर्ट में राष्ट्रीय दलों का रिकॉर्ड भी बेहतर नहीं दिखता। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के पहले चरण में चुनाव लड़ने वाले 70 प्रत्याशियों में से 53 यानी 76 प्रतिशत उम्मीदवारों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। कांग्रेस के 23 उम्मीदवारों में से 15 (65 प्रतिशत) के खिलाफ आपराधिक केस हैं।


वहीं, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) भी इस मामले में पीछे नहीं है। पार्टी के 48 प्रत्याशियों में से 31 (65 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने अपने खिलाफ चल रहे आपराधिक मुकदमों की जानकारी दी है। जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के 57 उम्मीदवारों में से 22 (39 प्रतिशत) उम्मीदवारों पर केस दर्ज हैं।


लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के 13 उम्मीदवारों में से 7 (54 प्रतिशत) पर भी आपराधिक मामले चल रहे हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के 44 उम्मीदवारों में 12 (27 प्रतिशत) उम्मीदवारों ने बताया है कि उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज हैं।


एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, पहले चरण के उम्मीदवारों में 33 प्रत्याशियों ने बताया है कि उनके खिलाफ हत्या के मुकदमे चल रहे हैं। वहीं, 86 उम्मीदवारों ने कहा है कि उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामलों में न्यायालय में सुनवाई जारी है।


सबसे चिंताजनक आंकड़ा यह है कि 42 उम्मीदवारों ने महिला अपराधों से संबंधित मुकदमों की जानकारी दी है। इनमें से 2 प्रत्याशी ऐसे हैं, जिन पर बलात्कार के आरोप हैं। इससे स्पष्ट है कि बिहार की राजनीति में महिला सुरक्षा और सामाजिक न्याय के नारों के बीच वास्तविकता कुछ और ही तस्वीर पेश कर रही है।



रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 121 महिला उम्मीदवार मैदान में हैं, जो कुल उम्मीदवारों का मात्र 9 प्रतिशत हैं। यह आंकड़ा बताता है कि अब भी बिहार की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी सीमित है, जबकि सभी राजनीतिक दल महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं।


बिहार में राजनीति और अपराध का रिश्ता नया नहीं है। चुनावों में दागी उम्मीदवारों को टिकट देना अब सामान्य बात बन गई है। राजनीतिक दल यह तर्क देते हैं कि ऐसे उम्मीदवार “वोट जीतने में सक्षम” होते हैं, इसलिए उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। एडीआर की रिपोर्ट एक बार फिर इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि कानून बनाने वाली विधानसभा में कानून तोड़ने वाले बड़ी संख्या में प्रवेश पा रहे हैं।


रिपोर्ट यह भी संकेत देती है कि मतदाताओं के सामने अब यह बड़ी चुनौती है कि वे ऐसे प्रत्याशियों में से किसे चुनें जो वास्तव में जनता की सेवा करने के योग्य हो।