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Bihar Election 2025: फूंके हुए कारतूसों के दम पर बिहार का चुनावी रण जीतना चाह रही कांग्रेस! मिलेगी सफलता या होगा सूपड़ा साफ?

Bihar Election 2025: बिहार चुनाव के लिए कांग्रेस ने कई बड़े नेताओं को प्रचार की कमान सौंपी है, इनमें से अधिकतर नेता अपने राज्यों में हाल ही में चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या 'हारे हुए सिपाही' बिहार में जीत दिला पाएंगे?

Bihar Election 2025

22-Oct-2025 02:28 PM

By FIRST BIHAR

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने अपनी तैयारियों का बिगुल फूंक दिया है। पार्टी ने एक के बाद एक बड़े नेताओं को चुनाव प्रचार की ज़िम्मेदारी सौंपी है। लेकिन इन नेताओं को लेकर सियासी गलियारों में सवाल उठने लगे हैं, क्योंकि जिनके कंधों पर बिहार में कांग्रेस को मज़बूती देने की ज़िम्मेदारी है, वे खुद अपने-अपने प्रदेशों में चुनाव हार चुके हैं।


दरअसल, कांग्रेस ने पार्टी के जिन योद्धाओं को बिहार विधानसभा चुनाव की कमान सौंपी हैं, वह हारे हुए योद्दाओं से की तरह हैं। इन्हीं हारे हुए योद्धाओं के दम पर कांग्रेस बिहार में अपने बूते चुनाव लड़ने और चुनावी समर को फरत करने का सपना देख रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का सवाल है कि क्या कांग्रेस 'हारे हुए सिपाहियों' के भरोसे बिहार की जंग जीत पाएगी या सुपड़ा साफ हो जाएगा?


बिहार में चुनावी कमान संभाल रहे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम रहे सचिन पायलट राजस्थान में कांग्रेस को जीत नहीं दिला पाए और राज्य की सत्ता भाजपा के हाथ चली गई। कांग्रेस के रणनीतिकार माने जाने वाले भूपेश बघेल भी छत्तीसगढ़ में पार्टी की हार नहीं टाल सके। चुनावी हवा उनके खिलाफ गई और भाजपा ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया।


वहीं पूर्व सीएम और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, साथ ही प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी, दोनों की मौजूदगी में मध्य प्रदेश में कांग्रेस फिर सत्ता से बाहर रह गई। वरिष्ठ नेता अधीर रंजन की अगुवाई में बंगाल कांग्रेस का हाल बेहाल है। पार्टी विधानसभा में नगण्य हो चुकी है और सत्ता में वापसी की कोई उम्मीद नहीं दिख रही।


हरियाणा के प्रभावशाली नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला के रहते कांग्रेस एक दशक से ज्यादा समय से विपक्ष में है। हालिया चुनाव में भी पार्टी को जीत नहीं मिली। पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की अगुवाई में कांग्रेस पंजाब चुनाव हार गई और आम आदमी पार्टी ने सरकार बना ली।


असम में गौरव गोगोई के नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोला था, लेकिन पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। अलका लांबा, महिला कांग्रेस की अध्यक्ष, खुद दिल्ली चुनाव में हार गईं। वहीं राजेंद्र पाल गौतम जैसे नेता भी दिल्ली में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं दिला सके।


बिहार के रहने वाले कांग्रेस के युवा नेता कन्हैया कुमार ने बिहार और दिल्ली दोनों जगहों से चुनाव लड़ा लेकिन हर बार हार का सामना किया। अजय राय, जो यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से चुनाव हार चुके हैं। कांग्रेस यूपी में अब तक हाशिए पर है।


गुजरात में जिग्नेश मेवाणी अपनी सीट जीतने में कामयाब रहे, लेकिन गुजरात में कांग्रेस को करारी हार मिली। लोकसभा की पूर्व स्पीकर मीरा कुमार बिहार कांग्रेस की वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन वह भी अपना लोकसभा चुनाव हार चुकी हैं।


बहरहाल, कांग्रेस की यह रणनीति पुराने और हालिया चुनाव हार चुके नेताओं को बिहार चुनाव में उतारना राजनीतिक रूप से सवालों के घेरे में है। अब देखना यह होगा कि ये 'हारे हुए सिपाही' बिहार में पार्टी की नैया पार लगाने में कितने सफल होते हैं और बिहार में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को नई संजीवनी दे पाते हैं?