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19-Oct-2025 07:52 AM
By First Bihar
Bihar Assembly Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए जैसे-जैसे तारीखें नजदीक आ रही हैं, वैसे-वैसे राज्य की सियासत में नए समीकरण बनते दिख रहे हैं। इस बार राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और उसके नेता तेजस्वी यादव का रुख पहले से कुछ अलग नजर आ रहा है। कभी जातीय राजनीति की सीमाओं में बंधी दिखने वाली आरजेडी अब खुद को “ए टू ज़ेड पार्टी” के रूप में पेश करने की कोशिश में है — यानी हर वर्ग, हर समाज और हर समुदाय को साथ लेकर चलने वाली पार्टी।
तेजस्वी यादव ने इस दिशा में एक बड़ा कदम उन तबकों की ओर बढ़ाया है, जिनसे आरजेडी की दूरी लंबे समय से बनी हुई थी। खास तौर पर भूमिहार समाज को लेकर पार्टी का रवैया अब काफी नरम और सम्मानजनक हो गया है। भूमिहार समाज की बिहार में आबादी भले बहुत बड़ी न हो, लेकिन राज्य की राजनीति में उनकी बौद्धिक और आर्थिक पकड़ मजबूत रही है। तेजस्वी ने इस बात को समझा है कि बिहार की राजनीति में भूमिहार समुदाय की भागीदारी से चुनावी नैरेटिव (Narrative) पर बड़ा असर पड़ सकता है।
भूमिहार इलाकों में तेजस्वी की सक्रियता बढ़ी
तेजस्वी यादव पिछले कुछ वर्षों से लगातार उन इलाकों में सक्रिय हैं, जहां भूमिहारों की संख्या अधिक है। चाहे वह बक्सर, आरा, नालंदा, मुंगेर, या वैशाली का इलाका हो तेजस्वी इन क्षेत्रों में लगातार दौरे कर रहे हैं, स्थानीय नेताओं से मुलाकात कर रहे हैं और सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहे हैं।
2020 के विधानसभा चुनाव के बाद से आरजेडी ने कई ऐसे कदम उठाए हैं, जिनसे यह संदेश गया कि पार्टी अब सबको साथ लेकर चलना चाहती है। आरजेडी ने भूमिहार समाज के कई नेताओं को विधान परिषद (MLC) का टिकट दिया। इंजीनियर सौरभ, कार्तिक मास्टर और अजय सिंह जैसे नेताओं को एमएलसी बनाकर पार्टी ने यह संकेत दिया कि अब आरजेडी “सिर्फ एक जाति की पार्टी” नहीं रही।
विश्वास जीतने वाले नए चेहरे
इन नेताओं में इंजीनियर सौरभ, लक्खीसराय के अजय सिंह और मोकामा के कार्तिक मास्टर प्रमुख नाम हैं। कार्तिक मास्टर पहले बाहुबली अनंत सिंह के करीबी माने जाते थे, लेकिन बाद में उन्होंने आरजेडी का दामन थामा और पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की। मुकदमे के चलते मंत्री पद से इस्तीफा देने के बावजूद उन्होंने आरजेडी नहीं छोड़ी, जिससे तेजस्वी यादव का भरोसा और भी गहरा हुआ।
इसी तरह इंजीनियर सौरभ और अजय सिंह ने भी अपने-अपने क्षेत्रों में आरजेडी के पक्ष में मजबूत संगठन तैयार किया है। इन नेताओं की मौजूदगी ने भूमिहार समाज में यह संदेश दिया कि आरजेडी अब सिर्फ यादव-मुस्लिम समीकरण तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देना चाहती है।
जदयू और लोजपा के नेताओं की एंट्री से बढ़ा संदेश
तेजस्वी यादव ने इस रणनीति को और आगे बढ़ाते हुए जदयू और लोजपा (रामविलास) के असंतुष्ट नेताओं को भी अपने साथ जोड़ना शुरू किया है। जदयू के विधायक डॉ. संजीव कुमार, जिन्होंने 2024 में नीतीश कुमार की सरकार के खिलाफ खुलकर मोर्चा खोला था, अब आरजेडी के टिकट पर परबत्ता विधानसभा सीट से मैदान में हैं।
इसी तरह बरबीघा के विधायक सुदर्शन सिंह, जो पहले जदयू में थे, अब पार्टी से नाराज चल रहे हैं और माना जा रहा है कि वे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो आरजेडी के लिए यह एक राजनीतिक अवसर हो सकता है कि वह उनके समर्थक वोटों को अपने पाले में लाए।
मुन्ना शुक्ला और सूरजभान सिंह परिवार को मिली अहम जगह
आरजेडी की यह नई रणनीति सिर्फ उम्मीदवार चयन तक सीमित नहीं है, बल्कि पार्टी का मकसद सामाजिक संदेश देना भी है। वैशाली के बाहुबली नेता मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला को आरजेडी ने लालगंज सीट से उम्मीदवार बनाया है। यह कदम साफ दिखाता है कि पार्टी भूमिहार परिवारों को भी राजनीतिक सम्मान देने की दिशा में आगे बढ़ रही है।
वहीं पूर्व एलजेपी नेता सूरजभान सिंह, जो पशुपति पारस से नाराज चल रहे थे, उन्होंने भी आरजेडी का दामन थामा है। अब आरजेडी ने उनकी पत्नी को मोकामा सीट से अनंत सिंह के खिलाफ मैदान में उतारा है। यह मुकाबला राज्य की राजनीति में काफी दिलचस्प हो सकता है, क्योंकि अनंत सिंह लंबे समय से मोकामा की राजनीति का बड़ा चेहरा रहे हैं।
‘ए टू ज़ेड पार्टी’ की छवि गढ़ने की कोशिश
तेजस्वी यादव समझते हैं कि बिहार की राजनीति अब सिर्फ परंपरागत जातीय आधार पर नहीं चल सकती। युवा मतदाता, मध्यम वर्ग और सामाजिक न्याय की नई व्याख्या को लेकर उन्हें एक नई पहचान चाहिए। इसी कारण वे आरजेडी को “ए टू ज़ेड पार्टी” के रूप में स्थापित करना चाहते हैं — यानी हर तबके की भागीदारी, हर समाज की हिस्सेदारी।
आरजेडी के इस बदलाव ने पार्टी की छवि को एक नए रूप में पेश किया है। अब यह केवल “MY (मुस्लिम-यादव)” समीकरण तक सीमित नहीं रही, बल्कि भूमिहार, कुशवाहा, ब्राह्मण और पिछड़े वर्गों तक भी विस्तार ले रही है।
तेजस्वी यादव की यह नई रणनीति बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव ला सकती है। भूमिहार नेताओं को सम्मान देने, अन्य दलों के असंतुष्ट नेताओं को साथ जोड़ने और सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश से आरजेडी अब उस रूप में दिखाई दे रही है, जो कभी लालू यादव के दौर में नहीं दिखी थी। अगर यह रणनीति सफल होती है, तो 2025 का चुनाव न केवल आरजेडी के लिए बल्कि पूरे बिहार की सियासत के लिए निर्णायक साबित हो सकता है।