नीतीश सरकार का बड़ा कारनामा: सत्ताधारी विधायक को दिया करोड़ों का बालू ठेका, MLA की सदस्यता पर खतरा!

नीतीश सरकार का बड़ा कारनामा: सत्ताधारी विधायक को दिया करोड़ों का बालू ठेका, MLA की सदस्यता पर खतरा!

PATNA: बिहार में सुशासन के दावे वाली सरकार का बड़ा कारनामा सामने आया है। सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक के फर्म को करोड़ों का बालू का ठेका दे दिया गया है। आरोप ये लग रहा कि विधायक को ठेका देने के लिए जमकर धांधली भी की गयी। उधर ये मामला जन प्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन भी बताया जा रहा है, जिसमें विधायक की विधानसभा सदस्यता रद्द की जा सकती है। 


JDU विधायक को मिला ठेका

मामला बरबीघा के JDU विधायक सुदर्शन से जुड़ा है। आरोप यह है कि सरकार ने अपने विधायक की फर्म को करोड़ों का बालू ठेका दे दिया है। JDU विधायक सुदर्शन का प्रतिष्ठान है सुनीला एंड संस फीलिंग स्टेशन। सरकार ने इसी फर्म को लखीसराय जिले में बालू खनन का बड़ा ठेका दे दिया है। सरकारी कागजातों के मुताबिक सुनीला एंड सन्स फीलिंग स्टेशन को लखीसराय जिले में 19 करोड़ से ज्यादा का बालू ठेका दिया है। 


सरकारी कागजातों में दर्ज है कि इस प्रतिष्ठान के मालिक सुदर्शन कुमार हैं। वैसे भी सुदर्शन कुमार ने 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान अपने शपथ पत्र में ये जानकारी दी थी कि वे सुनीला एंड सन्स फीलिंग सेंटर के मालिक हैं। 


ठेके में धांधली का भी आरोप

उधर विधायक सुदर्शन को बालू ठेका देने में जमकर धांधली किये जाने का भी आरोप लगे रहा है। बालू खनन के जिस ठेके को सुदर्शन कुमार को दिया गया है। उसमें बोली लगाने वाले गोपाल कुमार सिंह ने इसमे धांधली का आरोप लगाया है। उन्होंने बिहार सरकार के आला अधिकारियों को पत्र भी लिखा है। 


जायेगी विधायक की विधायकी?

लेकिन इस ठेके की सबसे बड़ी बात ये है कि इस मामले में विधायक सुदर्शन की विधानसभा सदस्यता जा सकती है। दरअसल ये पूरा मामला लोक प्रतिनिधित्व कानून के उल्लंघन का बन रहा है। देश में लागू लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 (Representation of people's Act 1951) के मुताबिक कोई विधायक किसी तरह का कोई सरकारी ठेका नहीं ले सकता। अगर किसी कंपनी या प्रतिष्ठान में उसके 25 प्रतिशत से ज्यादा शेयर है तो भी उस कंपनी या प्रतिष्ठान के नाम पर सरकारी ठेका नहीं लिया जा सकता। जबकि विधायक सुदर्शन के मामले में जिस प्रतिष्ठान को बालू का ठेका मिला है उसके मालिक ही विधायक हैं। 


लोक प्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9A कहती है

"कोई भी जन प्रतिनिधि अयोग्य होगा यदि और जब तक कोई ऐसी संविदा विद्यमान है जो उसने समुचित सरकार के साथ अपने व्यापार या कारबार के अनुक्रम में उस सरकार को माल का प्रदाय करने के लिए या उस सरकार द्वारा उपक्रांत किन्ही संकर्मों के निष्पादन के लिए की है "


ऐसे ही आरोप में फंसे हैं हेमंत सोरेन

बता दें कि ऐसे ही आरोप में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन फंसे है। उन पर भी आरोप है कि उन्होंने अपने फर्म के नाम पर खनन का पट्टा लिया। चर्चा ये है कि चुनाव आयोग उनकी विधायकी रद्द करने की सिफारिश कर चुका है। लेकिन राज्यपाल ने उसे अपने पास रोक रखा है। विधायक सुदर्शन पर भी ठेका लेने का आरोप साबित होता है तो उनकी विधायकी जा सकती है। 


विधायक ने आरोपों का किया खंडन

इस पूरे विवाद को लेकर फर्स्ट बिहार ने जनता दल यूनाइटेड के विधायक सुदर्शन से बातचीत की और उनका पक्ष जाना। विधायक सुदर्शन ने सीधे तौर पर कहा कि यह कंपनी उनके मां के नाम पर है और उनके निधन के बाद से वह इसके प्रोपराइटर हैं, लेकिन उन्होंने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है। सुदर्शन ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला भी दिया। उन्होंने कहा कि विधायक होने के बावजूद अगर सरकार के पास तय राशि जमा कर वह कॉन्ट्रैक्ट ले रहे हैं तो इसमें क्या गलत है? विधायक ने यह भी कहा कि इस नीलामी प्रक्रिया में जो लोग असफल रहे अब वह बेवजह विवाद खड़ा कर रहे हैं। तकनीकी परेशानी का हवाला देकर अपनी असफलता को छिपा रहे हैं।


विधायक ने सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट का हवाला देकर कहा कि माइनिंग लीज और कॉन्ट्रैक्ट में फर्क होता है। माइनिंग लीज उस कानून के तहत नहीं आता जिसका हवाला देखे तो उनके ऊपर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी एक पुराने मामले में 2001 के अंदर आदेश देते हुए माइनिंग लीज को इस कानून के दायरे से अलग रखा था। यह मामला हरियाणा के एक तत्कालीन विधायक से जुड़ा हुआ था।


बिहार के एक मंत्री की भूमिका

सत्ता के गलियारे में चर्चा है कि सरकार के सबसे बड़े साहब के करीबी माने जाने वाले मंत्री का भी इस पूरे मामले में रोल है। मंत्री जी की ही पहुँच से विधायक को ठेका मिला है। ये वही मंत्री हैं जिनकी सिफारिश से सुदर्शन को विधानसभा चुनाव में JDU का टिकट मिला था और बदले में मंत्री बड़ी मुसीबत से उबर गए थे।