नगर निकाय चुनाव में आरक्षण पर सरकारी ड्रामे में जनता का पैसा फूंका गया: नीतीश सरकार ने वकीलों पर करोड़ों रूपये खर्च किये

नगर निकाय चुनाव में आरक्षण पर सरकारी ड्रामे में जनता का पैसा फूंका गया: नीतीश सरकार ने वकीलों पर करोड़ों रूपये खर्च किये

PATNA: बिहार में नगर निकाय के चुनाव में आरक्षण को लेकर महीनों ड्रामा करने वाली नीतीश सरकार ने सरकारी खजाने से पानी की तरह पैसे बहाये। सरकार ने आखिरकार वही बात मानी जो कोर्ट शुरू से ही कह रहा था। लेकिन इस बीच बिहार सरकार ने सिर्फ वकीलों पर आम लोगों के करोड़ों रूपये खर्च कर दिये। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं मानने के लिए 15 रिव्यू पेटीशन दायर किया, जिसमें दिल्ली के वकीलों को मोटी फीस देकर बुलाया गया। सरकारी खजाने से वकीलों को मोटी फीस दे दी गयी और फिर सरकार ने यू-टर्न मार कर कोर्ट की बात मानने का शपथ पत्र दाखिल कर दिया। 


बता दें कि नगर निकाय चुनाव में पिछड़ों को आरक्षण को लेकर नीतीश सरकार शुरु से ही अपनी जिद पर अड़ी रही. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया था कि आरक्षण तभी दिया जा सकता है जब राज्य सरकार ट्रिपल टेस्ट कराने के उसके आदेश को मानेगी. लेकिन बिहार सरकार अपनी शर्तों पर चुनाव कराने पर अड़ी रही. बिहार सरकार ने इसके लिए पटना हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ा. लेकिन बुधवार को यू-टर्न मारते हुए ये कहा कि वह कोर्ट के आदेश के मुताबिक ही चुनाव करायेगी।


बीजेपी ने कहा-वकील घोटाला हुआ

बीजेपी ने गुरुवार को इस मसले पर नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला. बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि नीतीश कुमार की सरकार कई घोटालों में लिप्त रही है, लेकिन पहली बार बिहार में वकील घोटाला हुआ है. बीजेपी अध्यक्ष ने कहा- हमने कई बार नीतीश जी को आयोग बनाने के लिए कहा लेकिन वे नहीं माने. उन्होंने कोर्ट में कुल 15 रिव्यू पेटीशन दायर किए।


एक डेट पर 35 लाख लेने वाले वकील को बुलाया

संजय जायसवाल ने कहा कि नीतीश कुमार ने अपनी जिद पूरी करने के लिए हर डेट पर 35 लाख रुपये लेने वाले वकीलों को दिल्ली से बुलवाया. नीतीश कुमार पर सवाल खड़ा करते हुए संजय जायसवाल ने पूछा कि जब सरकार को अपना पेटीशन वापस ही लेना था और कोर्ट में कोई बहस ही नहीं करनी थी तो इतनी बड़ी रकम वकीलों को क्यों दिए गये? अगर सरकार को कोर्ट की बात माननी ही थी तो उसके लिए बिहार सरकार के एजी यानि एडवोकेट जेनरल हैं ही. लेकिन क्या बिहार के एजी भी ‘रबर स्टैंप सीएम’ की तरह ‘रबर स्टैम्प एजी’ हो गए हैं. क्या एजी का काम कोर्ट में खुद बहस करने के बजाए दिल्ली से वकीलों को लाना भर रह गया है?