'डंडे' पर राहुल गांधी को नहीं मिला तेजस्वी का साथ, कहा- लाठी नहीं कलम की करें बात

'डंडे' पर राहुल गांधी को नहीं मिला तेजस्वी का साथ, कहा- लाठी नहीं कलम की करें बात

PATNA : कभी 'तेज पिलावन लाठी भजावन' करने वाले आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के लाल को लाठी और डंडे का साथ नहीं चाहिए। तेजस्वी यादव ने  डंडा चलाने वाले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को बता दिया है कि वे लाठी नहीं कलम चलाने की बात करें तो अच्छा है। साथ ही उन्होनें जता दिया कि आरजेडी को लाठी संस्कृति से बाहर ले जाने के लिए वे कितने उत्सुक हैं। 


तेजस्वी यादव शुक्रवार को लंबे अरसे के बाद जब पटना पहुंचे तो उन्होनें मीडिया के सामने सीएम नीतीश कुमार पर चौतरफा हमला तो बोला ही साथ ही उनके निशाने पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी आ गए। तेजस्वी को राहुल गांधी के पीएम को डंडा मारने वाला बयान पसंद नहीं आया । तेजस्वी ने साफ तौर पर कहा कि डंडा और लाठी की बात अब नहीं होनी चाहिए अब कलम चलाने की बात हो। तेजस्वी ने हालांकि आगे ये भी कहा कि लोगों को दिल्ली चुनाव परिणाम का इन्तजार करना चाहिए। झारखंड में सब को पता है कि डंडा किस पर पड़ा है।लोग हरियाणा चुनाव में भी इसी तरह कह रहे थे लेकिन जब परिणाम आया तो रिजल्ट कुछ और हुआ। साथ ही उन्होनें कहा कि इस तरह की बात नही करनी चाहिए लाठी डंडा की बात नहीं बल्कि कलम की बात करनी चाहिए।


दरअसल जब से राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर हमला बोलते हुए ये कह  दिया कि  ये जो नरेंद्र मोदी भाषण दे रहा है, छह महीने बाद ये घर से बाहर नहीं निकल पाएगा। हिन्दुस्तान के युवा इसको ऐसा डंडा मारेंगे, इसको समझा देंगे कि हिन्दुस्तान के युवा को रोजगार दिए बिना ये देश आगे नहीं बढ़ सकता। इसके बाद से देश की राजनीति गरम है। बीजेपी लगातार कांग्रेस पर हमला बोल रही है । गुरूवार को सदन में बोलने के लिए खड़े हुए पीएम मोदी ने भी इसका करारा जवाब राहुल गांधी को दिया था।


अब फिर से वापस चलते हैं लाठी-डंडे के मुद्दे पर। लालू यादव की पार्टी को कभी लाठी-डंडों वाली पार्टी कहा जाता था। लालू यादव कहते थे कि वे इसी लाठी के सहारे भैंस के सींग पकड़ कर उसपर चढ़ जाते हैं। लालू यादव के लाठी प्रेम ने ही उन्हें लाठी रैला करने के लिए प्रेरित किया था। साल 2003 में जब लालू यादव का असर बिहार की राजनीति में कम पड़ने लगा था।तब उन्होनें अपना जनाधार बचाने के लिए लाठी रैला किया था। लाठी उस वर्ग का भी प्रतीक है, जो खेती-किसानी और पशुपालन से जुड़ा है। ये वंचित तबके के हाथ में आए उस 'राजदंड' जैसा भी है, जो अक्‍सर सत्ता पर काबिज 'बाहुबलियों' के हाथों में देखा जाता रहा है। लालू की  तेल पिलावन लाठी भजावन रैली में  पटना के गांधी मैदान में 5 लाख बिहारी जमा हो गये थे।


लेकिन आज लाठी-डंडे की संस्कृति को नकारने की बात कर रहे तेजस्वी यादव शायद आरजेडी के उस दौर से बाहर निकलना चाहते हैं जब बिहार में जंगलराज और आरजेडी  की लाठी संस्कृति का हवाला दे-देकर नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर काबिज हो गये थे। तेजस्वी आज पार्टी को पढ़ा-लिखा और सुसंस्कृत बनाना चाहते हैं। हालांकि तेजस्वी की राह कितनी आसान होगी ये तो वक्त ही तय करेगा।