विधानसभा चुनाव में वर्चुअल रैली का विरोध, छोटी पार्टियों ने बजट से बाहर बताकर विरोध किया

विधानसभा चुनाव में वर्चुअल रैली का विरोध, छोटी पार्टियों ने बजट से बाहर बताकर विरोध किया

PATNA : देश में कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा है लेकिन बिहार में कोरोना काल के बीच विधानसभा चुनाव की तैयारी बदस्तूर जारी है. चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से विधानसभा चुनाव को लेकर विचार-विमर्श किया है. मतदाता पुनरीक्षण का काम जारी है. बाहर के राज्यों से ईवीएम मंगाए जा रहे हैं और साथ ही साथ सभी जिलों के डीएम एसपी के साथ आयोग वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चुनावी तैयारियों की समीक्षा कर रहा है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पहले ही कह चुके हैं कि बिहार में विधानसभा चुनाव और समय पर होंगे. आयोग की तैयारी भी इसी तरह इशारा कर रही है. लेकिन विधानसभा चुनाव के पहले राज्य में छोटी पार्टियों को अब बड़ा डर सता रहा है.

रोक लगाने की मांग

बिहार में विधानसभा चुनाव कोरोना वायरस को देखते हुए नए अंदाज के साथ लड़ा जाना है. आयोग से लेकर तमाम बड़ी पार्टियों ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वह जमीनी स्तर पर रैलियों की बजाय वर्चुअल रैली का सहारा लेंगे. भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले में बढ़त भी ले ली है. बीजेपी की तरफ से अमित शाह ने वर्चुअल रैली की शुरुआत की थी और अब पार्टी हर दिन 2 विधानसभा क्षेत्रों में वर्चुअल रैली कर रही है. लेकिन राज्य के छोटे दल वर्चुअल रैली को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं. छोटे लोगों का कहना है कि वर्चुअल रैली में बड़ा खर्च होता है. लिहाजा इस प्लेटफार्म पर रोक लगनी चाहिए. भाकपा माले ने इस मामले में चुनाव आयोग के सामने एतराज भी दर्ज कराया है. भाकपा माले की तरफ से बिहार निर्वाचन आयोग को एक ज्ञापन सौंपा गया है. जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि वर्चुअल चुनाव रैली पर रोक लगाई जाए. भाजपा का कहना है कि इस तरह के माध्यम से बड़ी और सत्ताधारी पार्टियों को फायदा पहुंचेगा. बड़ी पार्टियों के पास पैसे की कोई कमी नहीं है लिहाजा टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पैसे के दम पर कर सकते हैं जबकि जमीनी स्तर की राजनीति करने वाली लेफ्ट पार्टियां और अन्य राजनीतिक दल इस मामले में पिछड़ सकते हैं.



छोटे पार्टियों को नुकसान होने का डर

भाकपा माले ने चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपा है. उसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि वर्चुअल चुनाव प्रचार का तरीका बड़े और पैसे वाली पार्टियों को फायदा पहुंचाएगा. जबकि छोटी पार्टियां इस मामले में पिछड़ जाएंगी. छोटे दल आयोग के सामने अपनी मांग रख रहे हैं और साथ ही साथ यह तर्क भी दे रहे हैं कि वर्चुअल तरीके से रैली के जरिए चुनाव प्रचार पर जो खर्च आएगा उससे लोकतांत्रिक अधिकारों को नुकसान पहुंचेगा. चुनाव एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है लिहाजा जनता के बीच पहुंचने के लिए जनसंपर्क और सीधा संवाद से सबसे बेहतर विकल्प है. छोटे लोगों का कहना है कि आयोग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह सत्ताधारी हो या विपक्ष बड़े हो या छोटे सभी दलों को चुनाव में समान अवसर उपलब्ध कराए.